बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा कि शादी का वादा करके महिला के साथ आपसी सहमति से सेक्स करना धोखा देने कि श्रेणी में नहीं आता है।
उच्च न्यायालय का यह फैसला एक निचली अदालत के उस आदेश को पलटने के बाद आया जिसमें एक महिला की प्राथमिकी के आधार पर पुरुष को धोखाधड़ी का दोषी ठहराया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने शादी के बहाने उसके साथ यौन संबंध बनाए लेकिन बाद में उससे शादी करने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने यह साबित करने के लिए सबूतों की कमी का हवाला देते हुए उस व्यक्ति को बरी कर दिया कि आरोपी शुरू से ही उससे शादी करने का इरादा नहीं रखता था।
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हाईकोर्ट ने कहा कि सबूतों से यह पता चलता है कि आरोपी महिला को अच्छी तरह जानता था और उसके साथ लंबे समय तक यौन संवध बनाए और सबूतों से यह भी पता चलता है कि दोनों के बीच प्रेम संबंध थे और सबूतों से यह भी पता चलता है कि दोनों के बीच यौन संबंध आपसी सहमति से बने है। हाईकोर्ट ने यह सवाल उठाए कि क्या आरोपी को यौन संबंध बनाने के बाद महिला से शादी से इंकार करना आईपीसी कि धारा 417 के तहत धोखा देने कि श्रेणी में आता है या नहीं।
उन्होने आगे कहा, कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि शुरू से ही आरोपी का उससे शादी करने का इरादा नहीं था। सबूत के अभाव में यह साबित करने के लिए कि पीड़िता ने तथ्य की गलत धारणा पर शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी, जैसा कि आईपीसी की धारा 90 के तहत निर्धारित किया गया है, शादी से इनकार करना आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध नहीं होगा।